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किन्नू की खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसेकरें

किन्नू की खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें

पूर्वी राजस्थान में किन्नौ की खेती की अच्छी संभावनाएं है। #धोलपुर में #राजाखेड़ा, #बाड़ी, #बसेड़ी आदि जगह किसानों द्वारा अभी किन्नौ फसल बहुत कम क्षेत्र में की जा रही है परंतु किसान भाई किन्नौ का अच्छा उत्पादन देखकर अब किन्नौ के नए बगीचे स्थापित कर रहेहै।  पिछले कुछ वर्षों में इसकी खेती अपरम्परागत क्षेत्रों में भी तेजी से बढ़ रही है| किन्नू के क्षेत्रफल में जो निरंतर लगातार बढ़ोतरी हो रही है, इसका मुख्य कारण इस फल की देश में बढ़ती हुई लोकप्रियता है| इसकी उत्पादन क्षमता अच्छी रस की मात्रा तथा अच्छी कीमत के कारण इस फल को बढ़ावा मिल रहा है| किन्नू का फल पूरे देश की मंडियों में अपनी एक अलग ही पहचान बना चुका है

किसान भाई यदि इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करे इसकी पूरी जानकारी का नीचे दी गयी है

1.उपयुक्त_जलवायु=  

किन्नू की खेती उपोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रो की जाती है,  किन्नू का पौधा 10 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छा पनपता है

2.भूमि_का_चयन

-गहरी जल निकासी वाली दोमट व उपजाऊ भूमि जिसमें 2 मीटर गहराई तक किसी प्रकार की सख्त परत नहीं हो उपयुक्त रहती है और मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.5 होना चाहिए|

#खेती_की_तैयारी- किन्नू की बागवानी के लिए 6 x 6 या 5 x 6 मीटर की दूरी (कतार से कतार व पौधे से पौधा) पर लगाए जाते है| इस प्रकार पौधो की संख्या करीब 210 से 256 पौधे प्रति हेक्टेयर रहेगी|  

 

#पौधारोपण- किन्नू की खेती के लिए पौधारोपण फरवरी से मार्च तथा अगस्त से अक्तूबर में लगाए जाते है| पौधों को बिल्कुल सीधा लगाना चाहिए ताकि उनकी जड़े स्वाभाविक अवस्था में रहे और ताज हवा से बचाव के लिए प्रबंध करें| पौधारोपण के लिए जो 1 x 1 x 1 मीटर व्यास के गड्ढे बनाए थे, उनके बीच में 60 × 60 × 60 सैंटीमीटर के आकार के गड्ढे खोदें और उनमें पौधों की रोपाई कर दे| रोपाई के समय मिट्टी की आवश्यकतानुसार खाद व उर्वरक का प्रयोग करें, और रोपण के बाद हल्की सिंचाई अवश्य करे|


#खाद_उर्वरक- किन्नू की खेती के लिए 1 से 3 साल के पौधे को 15 से 30 किलोग्राम गोबर की खाद, 250 से 750 ग्राम यूरिया प्रति पौधा डालें| 4 से 7 साल के पौधे को 50 से 80 किलोग्राम गोबर की खाद, 950 से 1650 ग्राम यूरिया और 1375 से 2400 ग्राम सिंगल सुपर फासफेट प्रति वृक्ष डालें| 


#सिंचाई_प्रबंधन-इस फसल को ज्यादा पानी ना दे, क्योंकि इससे जड़ गलन, तना गलन आदि बीमारीयां लगती है| बढियां पैदावार के लिए थोड़े थोड़े समय के बाद हल्की सिंचाई करें| अंकुरण से पहले और फल बनने के बाद का समय सिंचाई के लिए नाज़ुक होता है| अच्छे उत्पादन और पानी की बचत के लिए बूंद-बूंद सिंचाई विधि को प्राथमिकता देनी चाहिए|


#काट_छांट=कटाई-छंटाई- किन्नू की खेती में टहनियों और पौधे के विकास के लिए कटाई-छंटाई करनी जरूरी है| यह क्रिया किसी भी समय की जा सकती है, पर इसकी कटाई छंटाई का सबसे बढ़िया समय फल तुड़ाई के बाद होता है| जब पौधों का विकास हो रहा हो तो कटाई-छंटाई ना करें| रोगी, प्रभावित, मुरझाई और नष्ट टहनियों को समय समय पर हटाते रहें|


 #फल_गिरना-किन्नू की खेती में यदि फल गिरते हो तो, इसकी रोकथाम के लिए 2,4-डी 10 ग्राम को 500 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें| |


 #फल_तुड़ाई- राजस्थान में किस्म के अनुसार किन्नू आमतौर पर दिसम्बर- जनवरी में पक जाते है| सही समय पर तुड़ाई करना आवश्यक है, क्योंकि समय से पहले या देरी से तुड़ाई करने से फलों की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है|


#पैदावार- वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी करने पर एक पूर्ण विकसित पौधे से 80 से 170 किलोग्राम फलत मिल जाती है|


मनीष कुमार मीना

स.कृषि अधिकारी धोलपुर

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