लेखक -मनीष कुमार मीना, AAO (कृषि विशेषज्ञ)
देश में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए यूरिया का उपयोग सर्वप्रथम हरित क्रांति (1965-66) के बाद पूरे देश में किया गया। हरित क्रांति के समय देश के कई इलाकों में इस यूरिया के बारे में किसानों को जानकारी नही थी। 1967 में एक एकड़ में केवल चार किलोJ यूरिया डाला जाता था जिससे गेहूं की पैदावार हमें तीन गुना अधिक मिली। 90 के दशक में यूरिया की मात्रा 10 गुना बढ़ चुकी थी यानी एक एकड़ में 125 kg यूरिया का प्रयोग होने लगा।1995 के बाद यूरिया की मात्रा बढ़ाने से उत्पादन बढ़ने के बजाय उत्पादन घटने लगा। जिससे किसान वापस खादो(गोबर) का प्रयोग अपने खेतों में करने लगे जिससे किसानों की उपज में बढ़ोतरी तो नही हुई लेकिन पैदावार कम भी नही हुई। परन्तु धीरे धीरे गोबर की उपलब्धता कम होने लगी। वर्तमान समय मे यूरिया का 250-300kg प्रति एकड़ प्रयोग किया जा रहा है।
भारत मे रासायनिक ओर नत्रजन उवर्रकों में सबसे ज्यादा प्रयोग यूरिया का किया जाता है । यूरिया के लगातार बढ़ती मात्रा से पर्यावरण प्रदूषित होता है, मृदा स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है, पौधों में बीमारी और कीट का खतरा अधिक बढ़ जाता है, फसल देर से प6कती है और उत्पादन कम होता है. साथ ही फसल की गुणवत्ता में भी कमी आती है | बढ़ते यूरिया के प्रयोग को ध्यान में रखते हुए भारत के वैज्ञानिक और इफको IFFCO ने पारंपरिक यूरिया के असंतुलित और अत्यधिक उपयोग को कम करने के लिए यूरिया के विकल्प के रूप में नैनो तकनीक आधारित नैनो यूरिया (तरल) उर्वरक विकसित किया। इस नैनोफर्टिलाइजर को दुनिया में पहली बार इफको-नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (एनबीआरसी) कलोल, गुजरात में एक मालिकाना पेटेंट तकनीक के माध्यम से स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है। नैनो यूरिया (तरल) नाइट्रोजन का एक स्रोत है जो एक प्रमुख आवश्यक पोषक तत्व है जो किसी पौधे की उचित वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। और परंपरागत यूरिया की तुलना में उच्च फसल उत्पादकता और गुणवत्ता की ओर जाता है।"
नैनो यूरिया (तरल) क्या है ?
नैनो यूरिया एक तरल (Liquid) खाद है जो नेनो तकनीक द्वारा तैयार नैनो यूरिया में नैनो यूरिया के नैनोस्केल कण होते हैं। इफको नैनो यूरिया तरल की 500 मिली. की एक बोतल सामान्य यूरिया के कम से कम एक बैग यानी 45kg बोरी के बराबर होगी. इसके प्रयोग से किसानों की लागत कम होगी. नैनो यूरिया तरल का आकार छोटा होने के कारण इसे पॉकेट में भी रखा जा सकता है जिससे परिवहन और भंडारण लागत में भी काफी कमी आएगी. यह यूरिया के परंपरागत विकल्प के रूप में पौधों को नाइट्रोजन प्रदान करने वाला एक पोषक तत्त्व (तरल) है।
नेनो यूरिया के फायदे:
- नैनो यूरिया को यूरिया के स्थान पर विकसित किया गया है और यह पारंपरिक यूरिया की आवश्यकता को न्यूनतम 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
- इसकी 500 मिली. की एक बोतल में 40,000 मिलीग्राम / लीटर नाइट्रोजन होता है, जो सामान्य यूरिया के एक बैग/बोरी के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्त्व प्रदान करेगा।
- परंपरागत यूरिया पौधों को नाइट्रोजन पहुँचाने में 30-40% प्रभावी है, जबकि नैनो यूरिया लिक्विड की प्रभावशीलता 80% से अधिक है।
- पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद, मिट्टी, वायु और पानी की गुणवत्ता में सुधार कर सकता है।
- नैनो यूरिया भूमिगत जल की गुणवत्ता सुधारने तथा जलवायु परिवर्तन व टिकाऊ उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव डालते हुए ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में अहम भूमिका निभाएगा
- पारंपरिक यूरिया से सस्ता किसानों को इनपुट लागत कम करें, जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो।
- फसल उत्पादकता, मिट्टी के स्वास्थ्य और उपज की पोषण गुणवत्ता में सुधार करता है।
- इसके उपयोग से उपज में औसतन 8-10% की वृद्धि पाई गई है।
- यह किसानों के खर्च के अनुकूल है तथा किसानों की आय बढ़ाने में कारगर होगा। इससे लॉजिस्टिक्स और वेयरहाउसिंग की लागत में भी काफी कमी आएगी
- इस तरह यह वेयरहाउस एवं लॉजिस्टिक्स खर्चे को कम करेगा।
- यह मिट्टी में यूरिया के अत्यधिक उपयोग को कम करके संतुलित पोषण कार्यक्रम को बढ़ावा देगा और फसलों को मजबूत, स्वस्थ और उन्हें कमज़ोर होकर टूटने (Lodging) आदि प्रभावों से बचाएगा।
उपयोग:
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), भारत सरकार और ओईसीडी अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों के दिशानिर्देशों के अनुसार जैव सुरक्षा और विषाक्तता के लिए नैनो यूरिया (तरल) का परीक्षण किया गया है। नैनो यूरिया (तरल) आवेदन के अनुशंसित स्तरों पर मनुष्यों, जानवरों, पक्षियों, राइजोस्फीयर जीवों और पर्यावरण के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, डीएसी और एफडब्ल्यू, भारत सरकार ने उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) के तहत इफको नैनो यूरिया (तरल) को नैनो उर्वरक के रूप में अधिसूचित किया है।
नैनो यूरिया कैसे काम करेगा
नेनो यूरिया तरल रूप में जब पत्तियों पर छिड़काव किया जाता है तो नैनो यूरिया आसानी से रंध्रों और अन्य छिद्रों से प्रवेश कर जाता है और पौधों की कोशिकाओं द्वारा आत्मसात कर लिया जाता है। यह फ्लोएम के माध्यम से स्रोत से पौधे के अंदर इसकी आवश्यकता के अनुसार डूबने तक आसानी से वितरित हो जाता है। अप्रयुक्त नाइट्रोजन को पौधे के रिक्तिका में संग्रहित किया जाता है और पौधे के उचित विकास और विकास के लिए धीरे-धीरे छोड़ा जाता है।
कीमत ओर इनपुट लागत
नैनो यूरिया (लिक्विड) में कोई सरकारी सब्सिडी शामिल नहीं है और नैनो यूरिया के 500 एमएल के एक बोतल का मूल्य सब्सिडी के बिना 240 रुपये रखा गया है। इस तरह परंपरागत यूरिया की एक बोरी के मुकाबले यह 10% सस्ता है।इस तरह यह किसानों का इनपुट लागत कम करेगा। परिवहन आसान और किफायती होगा, क्योंकि 500 मिलीलीटर की एक बोतल नियमित यूरिया उर्वरक के एक बैग के बराबर होगी
क्या नैनो यूरिया से प्रदूषण होगा?
पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी नैनो यूरिया काफी फायदेमंद है। परंपरागत यूरिया वायुमंडल या जल स्रोतों तक पहुंचकर इन्हें प्रदूषित करता है और जैव विविधता तथा मानव स्वास्थ्य और मृदा स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। जबकि नैनो यूरिया कुशल उपयोग को बढ़ावा देकर पर्यावरण को नुकसान होने से बचाता है और फसलों को मजबूत एवं स्वस्थ्य भी बनाता है। नैनो यूरिया भारत के आयात लागत को भी कम कर सकता है। वर्ष 2019-20 में यूरिया के 336 लाख मीट्रिन टन के उपभोग के बदले देश में कुल उत्पादन 244 लाख मीट्रिक टन था। इस तरह शेष की पूर्ति आयात से की गई। यदि किसानों द्वारा कम यूरिया का उपयोग किया जाता है तो आयात पर निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी। इस तरह यह प्रधानमंत्री के “आत्मनिर्भर भारत” के सपने को भी साकार कर सकता है।
कब से मिलने लगेगा नैनो यूरिया
इफको जून 2021 में ही नैनो यूरिया का उत्पादन आरंभ कर देगा और उसके पश्चात इसका वाणिज्यिक वितरण भी शीघ्र ही आरंभ कर देगा। इफको ने गुजरात के कलोल स्थित अपने यूरिया संयंत्र में नैनो यूरिया का स्वदेशी तरीके से विकसित किया है। ऐसी आशा की जा रही है कि इफको का नैनो यूरिया लिक्विड देश को एक अन्य हरित क्रांति की ओर ले जाएगा जो तुलनात्मक रूप से कहीं अधिक सतत, पर्यावरण अनुकूल, मृदा स्वास्थ्य रक्षक व किसानों के लिए लाभकारी होगा।
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