बाजरा के प्रमुख कीट व रोग -
Author-मनीष कुमार मीना
सहायक कृषि अधिकारी, RESEARCH SCHOLAR HORTICULTURE:
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राजस्थान में खरीफ में या मानसून में सबसे अधिक बोई जाने वाली फसल में बाजरा प्रमुख है। इस फसल को रोग, प्रमुख कीटों व जीवाणुओं से बचाना जरूरी है। बाजरे की प्रारंभिक अवस्था में सफेद लट, तनाछेदक कीट, तना मक्खी और दीमक लगने का अंदेशा रहता है। इनसे बचने के लिए किसान को सावधानी बरतने के साथ ही इनका तत्काल उपाय करने की भी जरूरत है। इससे न सिर्फ फसल के उत्पादन पर असर पड़ता है, बल्कि उत्पादकता भी प्रभावित हो सकती है। कातरे की लट फसलों को अत्यधिक नुकसान पँहुचाती हैं। मानसून की वर्षा होते ही इस कीट के पतंगे निकलना शुरू हो जाते है। इन पतंगो को प्रकाष की ओर आकर्षित करके नष्ट किया जा सकता हैं।
कातरा:कातरा नियंत्रण हेतु प्रकाश पाश का खेत में उपयोग कर आकर्षित करके निचे पानी व केरोसीन मिलाकर परात में रख देनें से पतंगे इस में गिरकर नष्ट हो जायेंगे। मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिषत या क्यूनॉलफास 1.5 प्रतिषत चूर्ण का 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें। जहाँ पानी उपलब्ध हो वहाँ डाइक्लोरोवास 100 ई.सी. 300 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें।
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राजस्थान में खरीफ में या मानसून में सबसे अधिक बोई जाने वाली फसल में बाजरा प्रमुख है। इस फसल को रोग, प्रमुख कीटों व जीवाणुओं से बचाना जरूरी है। बाजरे की प्रारंभिक अवस्था में सफेद लट, तनाछेदक कीट, तना मक्खी और दीमक लगने का अंदेशा रहता है। इनसे बचने के लिए किसान को सावधानी बरतने के साथ ही इनका तत्काल उपाय करने की भी जरूरत है। इससे न सिर्फ फसल के उत्पादन पर असर पड़ता है, बल्कि उत्पादकता भी प्रभावित हो सकती है। कातरे की लट फसलों को अत्यधिक नुकसान पँहुचाती हैं। मानसून की वर्षा होते ही इस कीट के पतंगे निकलना शुरू हो जाते है। इन पतंगो को प्रकाष की ओर आकर्षित करके नष्ट किया जा सकता हैं।
कातरा:कातरा नियंत्रण हेतु प्रकाश पाश का खेत में उपयोग कर आकर्षित करके निचे पानी व केरोसीन मिलाकर परात में रख देनें से पतंगे इस में गिरकर नष्ट हो जायेंगे। मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिषत या क्यूनॉलफास 1.5 प्रतिषत चूर्ण का 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें। जहाँ पानी उपलब्ध हो वहाँ डाइक्लोरोवास 100 ई.सी. 300 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें।
सफेद लट:
मानसून की वर्षा होते ही इस कीट के भृंग निकलना शुरू हो जाते है। इन भृंगो को प्रकाष की ओर आकर्षित करके नष्ट किया जा सकता हैं।
नियन्त्रण हेतु प्रकाष पाष का खेत में उपयोग कर आकर्षित करके नीचे पानी व केरोसीन मिलाकर परात में रख देनें से पतंगे इस में गिरकर नष्ट हो जायेंगे। फसल में लटों के प्रकोप की रोकथाम के लिये क्यूनॉलफास 5 प्रतिषत कण या कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिषत कण 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व कतारों मे ऊर देना चाहिए तथा गर्मियों में गहरी जुताई करनी चाहिए।
तना मक्खी:
इस कीट की गिडार पौधों को बढ़वार की प्रारंम्भिक अवस्था में काट देती हैं। जिससे पौधा सूख जाता है।
इसके नियन्त्रण के लिए थिमेट 10 जी. को 15-20 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से कूड़ो मे डालना चाहिए।
बीटल एवं ईयर हैड बग:
मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिषत या क्यूनॉलफास 1.5 प्रतिषत चूर्ण का 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें।
दीमक:
खेत में अच्छी तरह से सड़ी गोबर की खाद डालें तथा खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप होने पर क्लारोपाइरीफॉस 4 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के साथ देना चाहिए।
बाजरे मे रोग प्रबंधन:-
हरित बाली रोग( जागिया):
बीज को उपचारित करके ही बुवाई करें। रोग दिखाई देने पर बुवाई के 21 दिन बाद मैन्काजेब 2 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़के। तथा रोग रोधी किस्में डब्ल्यू.सी.सी.-75, राज-171, आर.एच.बी.-90, एच.एच.बी.-67, एम.एच.-169 बोयें एवं रोगग्रसित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर देवें।
अर्गट:
यह बाजरे का अतिभंयकर रोग है तथा इसे चेपा या चपका एवं गूदिंया के नाम से जाना जाता है। इस रोग का प्रभाव फसल में फूल आते समय होता है। रोगग्रसित फूलों में से हल्के गुलाबी रंग का गाढ़ा तथा चिपचिपा शहद जैसा तरल पदार्थ निकलता है।
रोग ग्रसित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर देवें। अधिक प्रकोप होने पर एक हैक्टेयर में 2 किलोग्राम मैंकाजेब 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। अर्गट रोग के लिए रोग रोधी किस्मों जैसे- आई.सी.टी.पी.8203, आई.सी.एम.वी.155 का प्रयोग करना चाहिए। बीज को नमक के घोल में उपचारित कर काम में लेवें।
ध्यान दें: अर्गट ग्रसित अनाज विषैला होने के कारण मनुष्य व पषु दोनों के लिए घातक होता है।
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