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शिमला मिर्च की उन्नत खेती करके किसान कमा सकते है लाखो में

                                                           शिमला मिर्च की उन्नत खेती 






लेखक- मनीष कुमार मीना, स. कृषि अधिकारी,कृषि विशेषज्ञ उद्यानिकी



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परिचय-
आज के समय मे शिमला मिर्च का उपयोग भारत के हर क्षेत्र में सब्जी के रूप में होता है।सब्जियों में शिमला मिर्च की खेती का एक बेहद ही महत्वपूर्ण स्थान रखती है. इसको ग्रीन पेपर, स्वीट पेपर, बेल पेपर आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है. अगर हम इसके आकार  और स्वाद की बात करें तो यह तीखा और आकार में भिन्न होता है. इसके फल गुदादार, मांसल, मोटा, घंटीनुमा कही से उभरा तो कहीं से दबा हुआ होता है. शिमला मिर्च की लगभग सभी किस्मों में तीखापन अत्यंत कम और नहीं के बराबर पाया जाता है. इसमें मुख्य रूप से विटामिन ए और सी की मात्रा अधिक होती है. इसीलिए इसको सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है. यदि कोई भी किसान इसकी खेती व उन्नत खेती व वैज्ञानिक तरीके से करें तो अधिक उत्पादन और आय प्राप्त कर सकते है. तो आइए जानते है कि इसके उन्नत किस्म की खेती किस तरह से की जा सकती है-
शिमला मिर्च की फसल नर्म आर्द्र जलवायु की फसल होती है. छत्तीसगढ़ में समान्यतः शीत ऋतु में तापमान 100 सेल्सियस से अक्सर नीचे नहीं जाता है और ठंड का प्रभाव बहुत कम दिनों के लिए रहने के कारण इसकी बर्ष भर फसलें ली जा सकती है. इसकी फसल की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए 21-25 डिग्री सेल्सियस तापमान सही रहता है. इसकी फसल के लिए पारा हानिकारक होता है.

भूमि

इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली चिकनी दोमट मिट्टी जिसका पी एच मान 6-6.6 होता है. वही बुलई दोमट मृदा भी अधिक खाद को डालकर, सही समय व उचित सिंचाई प्रबंधन द्वारा खेती किया जा सकती है. जमीन की सतह से नीचे क्यारियों की अपेक्षा इसकी खेती के लिए जमीन की सतह से ऊपर उठई एवं समतल क्यारियां ज्यादा उपयुक्त मानी जा सकती है.

उन्नत किस्में

शिमला मिर्च की उन्नत किस्मों में अर्का गौरव, अर्का मोहिनी, अर्का बंसत, ऐश्वर्या, अंलकार, अनुपम, हरी रानी, भारत, पूसा ग्रीन गोल्ड, हीरा, इंदिरा प्रमुख है.




खाद व उर्वरक

खेत की तैयारी के समय 25-30 टन गोबर की सड़ी हुई खाद और कंपोस्ट खाद को डालना चाहिए. आधार खाद के रूप में रोपाई के समय 60 किलोग्राम नत्रजन, 60-80 किग्राम, स्फुर, 60-80 कलोग्राम पोचाश डालान चाहिए. नत्रजन को दो भागों में बांटकर खड़ी फसल में रोपाई के 30 वं 55 दिन बाद टाप ड्रेसिगं के रूप में छिड़कना चाहिए.

रोपण दूरी

सामान्यतः 10-15 सेमी लंबा 4 से 5 पत्तियों वाला पौधा जो कि लगभग 40-45 दिनों में तैयार हो जाता है. रोपण के लिए उसका प्रयोग करें. पौध रोपण के एक दिन पूर्व क्यारियों में सिंचाई कर देना चाहिए. इससे पौधा आसानी से निकाला जा सकता है. पौध को शाम को मुख्य खेत में 60 से 45 सेमी की दूरी पर लगा देना चाहिए. रोपण के बाद खेत की हल्की सिंचाई कर दें.

सिंचाई

सिमला मिर्च की फसल को कम और ज्यादा पानी देने से नुकसान ही होता है. यदि खेत में ज्यादा पानी का भराव हो गया है तो तुरंत जल निकासी की व्यवस्था करनी चाहिए. मृदा में नमी होने पर सिंचाई करनी चाहिए. खेत में नमी की पहचान करने के लिए खेत की मिट्टी को हाथ में लेकर लड्डू बनाकर देखना चाहिए. मृदा मे नमी है यदि ना बने तो सिंचाई कर देना चाहिए.

निराई गुरई

रोपम के बाद शुरू के 30-45 दिनों तक खेत को खरपतवार से मुक्त रखना अच्छे फसल उत्पादन की दृष्टि से काफी जरूरी है. पहली निराई -गुढ़ाई रोपण के 25 और दूसरी 45 दिनों के बाद कर देनी चाहिए. पौधे रोपण के 30 दिनों के बाद पौधों में मिट्टी को चढ़ाना चाहिए ताकि पौधे और मजबूत हो जाए और गिरे नहीं. यदि खरपतवार के नियंत्रण हेतु रसायनों का प्रयोग करना है तो खेत में नमी की अवस्था में पेन्डामेथिलीन 4 लीटर 2 किलो प्रति हेक्टेयर की दर का प्रयोग करें.

फूल गिरना व उसकी रोकथाम

शिमला मिर्च में फूल लगना प्रारंभ होते ही प्लानोनिक्स नमक दवा को मिली लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर देना चाहिए. बाद में 25 दिन बाद दूसरा छिड़काव कर दें. इससे फूल झड़ना कम हो जाता है. साथ ही इसके उत्पादन में बढ़ोतरी होती है.

शिमला मिर्च में कीट

इसमें प्रमुख रूप से महू, थ्रपिस, सफेद मख्खी और मकड़ी का प्रकोप रहता है. इसके अलावा भूभतिया रोग, उकटा, पर्ण कुंचन, श्यामवर्ण  और फल सड़न का प्रकोप होता है. इनकी रोकथाम के लिए पसल चक्र को नियमित रूप से अपनाना चाहिए. स्वस्थ और उपचारित बीजों का ही प्रयोग करना चाहिए. मेन्कोजेब, ब्लिटॉक्स का प्रतिशत सांद्रता का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर 2 बार ही छिड़काव करें.

तुड़ाई

शिमला मिर्च की तुड़ाई पौध रोपण के 65-70 दिनों के बाद ही प्रारंभ हो जाता है. जो कि लगभग 90 से 120 दिनों तक चलता है. नियमित रूप से तुड़ाई का कार्य करना चाहिए. उन्नतशील किस्मों में 100 से 120 क्विंटल एवं संकर किस्मों में 200 से 250 क्विंटल हेक्टेयर उपज मिलती है.

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